जब मन एक नए पुष्प की भाँती खिला हो, तो रात के अँधेरे में भी नवप्रभात का आगमन होता है।
जब मैं एकांत का अनुभव करता हूँ तो भावों के प्रवाह की शब्दों से प्रस्तुति हो जाती हैं...
--उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.
चन्द्रप्रभ परमात्मा का
स्तवन गा रहा था। आनंदघनजी म. ने इस स्तवन में परमात्मा के प्रति अपनी श्रद्धा का
सागर उंडेल दिया है।परमात्मा क्या मिले... जीवन
का लक्ष्य मिल गया! जैसे किसी प्यासे को पानी मिला!जैसे किसी अंधे को आंख
मिली! जैसे किसी मूरत में प्राण आ गये!अपने इन्हीं अहोभावों की
अभिव्यक्ति उन्होंने स्तवन की आंकडी में की है।आंकडी है-सखि मने देखण दे, चन्द्रप्रभु मुख
चन्द, सखि मने देखण
दे!