बुधवार, 19 अगस्त 2015

NAVPRABHAT यदि मैंने ऐसा निर्णय न किया होता तो कितना अच्छा होता! यह सोच कर मैं दुखी हो गया। दु:ख से भरे उसी मन से विचार करने लगा- जो निर्णय नहीं हुआ, वो निर्णय होता तो कितना अच्छा होता!

नवप्रभात
चिंतक - पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागर जी म.सा.
मैं खाली बैठा था। देर तक पढते रहने से मस्तिष्क थोडी थकावट का अहसास करने लगा था। मैंने किताब बंद कर दी थी। आँखें मूंद ली थी। विचारों का प्रवाह आ... जा रहा था। बिना किसी प्रयास के मैं उसे देख रहा था।
मेरा मन उन क्षणों में मेरे ही निर्णयों, विचारों और आचारों की समीक्षा करने लगा था। किसी एक निर्णय पर विचार कर रहा था। उस निर्णय की पूर्व भूमिका, निर्णय के क्षणों का प्रवाह और उस निर्णय का परिणाम मेरी आँखों के समक्ष तैर रहा था।
मुझे अपने उस निर्णय से संतुष्टि न थी। क्योंकि जैसा परिणाम निर्णय लेने से पहले या निर्णय करते समय सोचा या चाहा था। वैसा हुआ नहीं था। वैसा हो भी नहीं सकता था। क्योंकि चाह तो हमेशा लम्बी और बडी ही होती है।
मैं विचार करने लगा- यदि मैंने ऐसा निर्णय न किया होता तो कितना अच्छा होता! यह सोच कर मैं दुखी हो गया। दु:ख से भरे उसी मन से विचार करने लगा- जो निर्णय नहीं हुआ, वो निर्णय होता तो कितना अच्छा होता! और मैं उस अच्छेपन की कल्पनाओं में खो गया। जो हुआ नहीं या जिसे पाया नहीं, मैं उसकी रंगीन कल्पनाओं में डूब गया।
थोडी देर बाद जब मैं वर्तमान के धरातल पर उतर आया और तटस्थ भावों से अपने इन विचारों की समीक्षा करने लगा।
मैं अपने मन से कहने लगा- जो हुआ नहीं, जो हो सकता नहीं, उसकी कल्पना करके क्यों दु:खी होता है। और दु:ख का कारण क्या है! हिन्दी भाषा का ‘तो’ बहुत दु:खी करता है। ऐसा हुआ होता तो... ऐसा किया होता तो....!
कल एक श्रावक आया था। वह कह रहा था- मेरे दादाजी के पास सैंकडों बीघा जमीन थी। आज से 30-40 साल पहले 50 रूपये बीघे के भाव से बेच दी। आज यदि वो जमीन हमारे पास होती तो अरबों रूपये हमारे पास होते। मैंने सोचा- मेरी सोच भी तो ऐसी ही है। उसकी जमीन के बारे में है, मेरी अन्य निर्णयों के बारे में! पर दिशा तो वही है। यह दिशा केवल और केवल दु:ख की ओर ही जाती है।
सच तो यह है- जो हो गया, सो हो गया। उसे अन्यथा नहीं किया जा सकता। अतीत को बदला नहीं जा सकता। इसलिये अपने वर्तमान से परम संतुष्टि का अनुभव करो ताकि भविष्य सुधरे।