सोमवार, 6 जनवरी 2014

नवप्रभात - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.

हमारी जिन्दगी का समय केवल और केवल प्रतीक्षा में बीतता है। दिन में हम रात की प्रतीक्षा करते हैं। और रात होने पर दिन की प्रतीक्षा में रात गुजार देते हैं।
 दिन को अच्छी तरह देख पाते हैं...  रात को!
यह खेल मन का है। वह वहाँ रहना नहीं चाहताजहाँ होता है। वह सदा आगे पीछेदांयें बांयेंइधर उधरउफपर नीचे झांकता रहता है। उसे सीधी नजर में कोई रस नहीं होता।